कविता|छत्रपती शासन |कवी निखिल खडसे


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*छत्रपती शासन* 


*लोकतंत्र के युग में भी*

*देखें सुरत प्रशासन कि*

*आओ थोडी बात करे*

*छत्रपती के शासन कि*


*फैला रहे दहशत को तुमने*

*बिमारी का नाम दिया*

*बच्चो बुढो और मजदूरो से*

*ऐसा क्यो बरताव किया*


*चिख-चिख कर नन्हीं बच्ची*

*भूक के मारे मर गयी*

*तुम्हारी राजनीती के सामने*

*भूक बच्ची कि हार गयी*


*झुटे वादों से पेट नही भरता*

*बात करो तुम राशन कि*

*मै कहता हू जरुरत है*

*देश को छत्रपती शासन कि*


*बढती रहेगी बिमारी हर दिन*

*मरते रहेंगे लोग बेशक*

*कुछ तो रहेंगे घर में अपने*

*कुछ तो मांगेगे अपना हक*


*हक मांग रहे सभी को तुम*

*चूप कैसे कराओंगे*

*15 लाख कि छोडो बात*

*तुम शिक्षा कब दिलाओंगे*


*पक चुके है कान सबके*

*सूनके आवाज भाषण कि*

*मै कहता हू जरुरत है*

*देश को छत्रपती शासन कि*


*शिक्षा को भी तुमने अब*

*पैसो से हीं तोल दिया*

*हाथ में देखे मोबाईल उनके*

*देश का भविष्य खो दिया*


*बना अगर डॉक्टर कही तो*

*इलाज कैसे वह कर पायेंगा*

*बनके साधू या सन्याशी*

*क्या गंगाजल छिडका जायेंगा*


*बंद करो व्यापार शिक्षा का*

*आसं छोडो तुम आसन कि*

*मै कहता हू जरुरत है*

*देश को छत्रपती शासन कि*


*युवा कवी :-*

*निखिल कैलासराव खडसे*

*तळेगाव (शां. पंत)*

*8459167410*



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