Overthinking poem|358VTN|avi bhagat

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 अति विचार ये, मन व्याकुल करे,

जैसे मकड़ी जाल में, खुद को ही धरे।


भूत भविष्य की, चिंता अनगिनत,

वर्तमान की खुशी, भूले हम सतत।


क्या होगा कल को, क्यों ऐसा हुआ,

सोच-सोच कर, मन ये थका हुआ।


बीते दिनों की, यादें सतातीं,

आने वाले कल की, चिंता जलातीं।


इस चक्रव्यूह से, कैसे निकले हम,

सरल जीवन का, मार्ग प्रशस्त करें हम।


छोटी-छोटी खुशियों में, आनंद ढूंढें,

वर्तमान में जीना, यही है सीख लें।


अति विचार को, विराम दें आज,

मन को शांति दें, यही है काज।


प्रकृति से सीखें, बहना निरंतर,

चिंताओं से मुक्त, जीवन हो सुंदर।

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